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ग़ज़ल
शेर में 'इक़बाल' का शैदा है 'ग़ालिब' का असीर
'हामिद'-ए-बे-बहरा-गो मुंकिर नहीं है मीर का
सय्यद हामिद
ग़ज़ल
कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं
क्या ख़बर थी इस अंजाम की कुछ नहीं कुछ नहीं
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता
गए फ़रहाद ओ मजनूँ अब किसी से दिल नहीं मिलता
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
जहाँ में जितने हैं माशूक़ उन सब से जुदा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
'ग़ालिब' के शहर 'मीर' की बस्ती में आ गए
हम लोग गाँव छोड़ के दिल्ली में आ गए
राही हमीदी चाँदपुरी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
रियाज़ हसन खाँ ख़याल
ग़ज़ल
बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए
क़दम उठ्ठे जिधर ज़ख़्मों के पत्थर सामने आए
इक़बाल माहिर
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़